DSpace Repository

सतत विकास के लिए शिक्षा और पारंपरिक शिक्षा के समानांतर भूमिका में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा

Show simple item record

dc.contributor.author श्रीवास्तव, डॉ. विवेक
dc.date.accessioned 2016-12-14T07:12:30Z
dc.date.available 2016-12-14T07:12:30Z
dc.date.issued 2004-09-20
dc.identifier.uri http://hdl.handle.net/123456789/55
dc.description.abstract गरीबी, भूख और आर्थिक-सामाजिक असमानता के विरुद्ध सबके लिए भोजन, सबके लिए स्वास्थ्य, भेदभाव रहित समतामूलक समाज के साथ सबका आर्थिक विकास ही हमारा सामाजिक जीवन लक्ष्य हो सकता है. ‘प्रत्येक मनुष्य’ का ‘समग्र विकास’ ही एक स्वस्थ्य समाज का लक्ष्य और उद्देश्य हो सकता है. सतत विकास का यही लक्ष्य है. सतत विकास, बिना रुके समाज के हर व्यक्ति को विकास के मानकों के अनुरूप विकास के समान अवसर दे कर समान स्तर पर ले कर आने के लक्ष्य और उद्देश्य के साथ सबको साथ लेकर आगे बढ़ना है. en_US
dc.subject भारत के विशेष सन्दर्भ में en_US
dc.title सतत विकास के लिए शिक्षा और पारंपरिक शिक्षा के समानांतर भूमिका में मुक्त एवं दूरस्थ शिक्षा en_US
dc.type Book en_US


Files in this item

This item appears in the following Collection(s)

Show simple item record

Search DSpace


Advanced Search

Browse

My Account